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हुआ करेगा हर इक लफ़्ज़ मुश्क-बार अपना | शाही शायरी
hua karega har ek lafz mushk-bar apna

ग़ज़ल

हुआ करेगा हर इक लफ़्ज़ मुश्क-बार अपना

ग़ालिब अयाज़

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हुआ करेगा हर इक लफ़्ज़ मुश्क-बार अपना
अभी सुकूँ से किए जाओ इंतिज़ार अपना

उठा लिया है हलफ़ गरचे जाँ-निसारी का
मुझे संभाल कि होता हूँ बार बार अपना

उदास आँख को है इंतिज़ार फ़स्ल-ए-मुराद
कभी तो मौसम-ए-जाँ होगा साज़गार अपना

तुम्हारे दर से उठाए गए मलाल नहीं
वहाँ तो छोड़ के आए हैं हम ग़ुबार अपना

बहुत बुलंद हुई जाती है अना की फ़सील
सो हम भी तंग किए जाते हैं हिसार अपना

हर इक चराग़ को है दुश्मनी हवा के साथ
बेचारी ले के कहाँ जाए इंतिशार अपना