हुआ है इश्क़ ताज़ा इब्तिदाई आह होती है
मुबारक तिफ़्ल-ए-दिल की आज बिस्मिल्लाह होती है
मिला जब दिरहम-ए-दाग़-ए-जुनूँ घबरा के दिल बोला
यही क्या इश्क़ की सरकार में तनख़्वाह होती है
बयाँ करता नहीं दिल वस्फ़ उस रु-ए-मुख़त्तत का
ख़ुदा के घर में तफ़सीर-ए-कलामुल्लाह होती है
फ़रोग़ अपना सिवा होता है ज़ुल्म-ए-चर्ख़-ए-गर्दां से
जो दिल जलता है रौशन और शम-ए-आह होती है
ग़ज़ल
हुआ है इश्क़ ताज़ा इब्तिदाई आह होती है
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी

