होश ओ ख़िरद से बेगाना बन जा 
हर फ़स्ल-ए-गुल में दीवाना बन जा 
आ दिल की बस्ती आबाद कर दे 
इक शब चराग़-ए-वीराना बन जा 
ख़ल्वत में क्या है जल्वत में गुम हो 
ज़िंदा हक़ीक़त-ए-अफ़्साना बन जा 
बे-सोज़ है बज़्म-ए-इल्म-ओ-दानिश 
शम-ए-यक़ीं का परवाना बन जा 
कितनी पिएगा जाम ओ सुबू से 
मस्त-ए-निगाह-ए-मस्ताना बन जा
        ग़ज़ल
होश ओ ख़िरद से बेगाना बन जा
सिकंदर अली वज्द

