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हो चराग़-ए-इल्म रौशन ठीक से | शाही शायरी
ho charag-e-ilm raushan Thik se

ग़ज़ल

हो चराग़-ए-इल्म रौशन ठीक से

इफ़्तिख़ार राग़िब

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हो चराग़-ए-इल्म रौशन ठीक से
लोग वाक़िफ़ हों नई तकनीक से

इल्म से रौशन तो है उन का दिमाग़
दिल के गोशे हैं मगर तारीक से

राय उस पर मत करो क़ाएम कोई
जानते जिस को नहीं नज़दीक से

मर्तबा किस का है कैसा क्या पता
बाज़ आना चाहिए तज़हीक से

हाथ फैलाना मुक़द्दर बन न जाए
पेट भरना छोड़ दीजे भीक से

जुड़ गया शीशा भरोसे का मगर
रह गए हैं बाल कुछ बारीक से

जिस का मक़्सद अदल ओ अम्न ओ आतिशी
दिल है वाबस्ता उसी तहरीक से

बे-सबब 'राग़िब' तड़प उठता है दिल
दिल को समझाना पड़ेगा ठीक से