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हज़ारों ग़म हैं इस मंज़िल में मंज़िल देखने वाले | शाही शायरी
hazaron gham hain is manzil mein manzil dekhne wale

ग़ज़ल

हज़ारों ग़म हैं इस मंज़िल में मंज़िल देखने वाले

एहसान दानिश

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हज़ारों ग़म हैं इस मंज़िल में मंज़िल देखने वाले
कलेजा थाम ले अपना मिरा दिल देखने वाले

ये दिल वालों को ता'लीम-ए-सुजूद पा-ए-जानाँ है
सर-ए-हर-मौज को बरपा-ए-साहिल देखने वाले

हर इक ज़र्रे में पोशीदा है इक तुग़्यान-ए-मदहोशी
सँभल कर देखना पैमाना-ए-दिल देखने वाले

मिटाता जा रहा हूँ नक़्श-ए-पा सहरा-नवर्दी में
कहाँ ढूँडेंगे मुझ को मेरी मंज़िल देखने वाले

तेरे दिल में हज़ारों महफ़िलें जल्वों की पिन्हाँ हैं
फ़लक पर अंजुम-ए-ताबाँ की महफ़िल देखने वाले

फ़िशार-ए-ज़ब्त से लैला कहीं मजनूँ न हो जाए
न देख अब सू-ए-महमिल सू-ए-महमिल देखने वाले

किसी का अक्स हूँ 'एहसान' मुराआत-ए-हक़ीक़त में
मुझे समझेंगे क्या तस्वीर-ए-बातिल देखने वाले