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हवा में नौहे घुले दुर्द मिशअलों में रहा | शाही शायरी
hawa mein nauhe ghule durd mishalon mein raha

ग़ज़ल

हवा में नौहे घुले दुर्द मिशअलों में रहा

क़य्यूम ताहिर

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हवा में नौहे घुले दुर्द मिशअलों में रहा
बहुत अजीब सा दुख था कि बस्तियों में रहा

तमाम पेड़ थे साहिल पे आग की ज़द में
मिरे क़बीले का हर फ़र्द पानियों में रहा

बहुत दिलासे दिए हम ने शब-गज़ीदा को
मगर वो शख़्स कि दिन में भी वसवसों में रहा

वही था आख़िरी नुक़्ता मिरी लकीरों का
हर एक क़ौस में वो सारे ज़ावियों में रहा

ये जानते भी कि सारा सफ़र ख़ला का है
बला का हौसला टूटे हुए परों में रहा

भरी बहार हरे ख़्वाब के गुलाब लिए
तमाम उम्र मैं उजड़ी हुई रुतों में रहा

क़रीब आए तो सूरज भी बुझ गए 'क़य्यूम'
सियाह बर्फ़ की सूरत लहू रगों में रहा