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हवा की राह-नुमाई पे शक नहीं रखते | शाही शायरी
hawa ki rah-numai pe shak nahin rakhte

ग़ज़ल

हवा की राह-नुमाई पे शक नहीं रखते

शारिक़ अदील

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हवा की राह-नुमाई पे शक नहीं रखते
हम अपने पाँव के नीचे सड़क नहीं रखते

हमारी आँखों में इक ऐसा ख़्वाब सिमटा है
पए सुरूर पलक पर पलक नहीं रखते

हवा दहाड़ के टकराए भी तो क्या हासिल
पहाड़ अपने बदन में लचक नहीं रखते

तुम उस को कुंद समझ कर न धोका खा जाना
हम अपनी तेग़-ए-अना पर चमक नहीं रखते

हमारी गलियों में ऐसे भी लोग आते हैं
ज़मीं पे पैर हैं रखते धमक नहीं रखते