हवा के रंग में दुनिया पे आश्कार हुआ
मैं क़ैद-ए-जिस्म से निकला तो बे-कनार हुआ
सितारे टूट के तारीकियाँ बिखेर गए
ये हादसा भी सफ़र में हज़ार बार हुआ
बुलंदियों पे था महव-ए-सफ़र हुआ की तरह
लिबास-ख़ाक जो पहना तो ख़ाकसार हुआ
लहूलुहान हुआ बहर-ओ-बर का हर मंज़र
जो मेरी राह में आया मिरा शिकार हुआ
तमाम शहर ने मुजरिम मुझी को गर्दाना
तमाम शहर में इक मैं ही संगसार हुआ
ग़ज़ल
हवा के रंग में दुनिया पे आश्कार हुआ
कुमार पाशी

