हवा चली है न पत्ता कोई हिला अब तक
वही है एक ख़मोशी का सिलसिला अब तक
वो कौन लोग हैं किस की तलाश में गुम हैं
हमें तो अपना पता भी नहीं मिला अब तक
तू अपने चाहने वालों से आश्ना न हुई
यही तो तुझ से है ऐ ज़ीस्त इक गिला अब तक
किसी का दामन-ए-सद-चाक क्या रफ़ू करते
कि हम से अपना भी दामन नहीं सिला अब तक
वही सफ़र वही तारे वही थकन बाक़ी
वही है बुझते चराग़ों का सिलसिला अब तक
पुरानी बात मैं कल की समझ के भूल गया
मगर है ज़ख़्म तमन्ना-ए-दिल खुला अब तक
जिसे मैं ढूँड रहा हूँ गली गली 'अंजुम'
वो शख़्स मुझ से बिछड़ कर नहीं मिला अब तक
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ग़ज़ल
हवा चली है न पत्ता कोई हिला अब तक
आनन्द सरूप अंजुम