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हौसले मायूस ज़ौक़-ए-जुस्तुजू नाकाम है | शाही शायरी
hausle mayus zauq-e-justuju nakaam hai

ग़ज़ल

हौसले मायूस ज़ौक़-ए-जुस्तुजू नाकाम है

एहसान दानिश

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हौसले मायूस ज़ौक़-ए-जुस्तुजू नाकाम है
ये दिल-ए-ना-महरम-ए-अंजाम का अंजाम है

आँख क्या है हुस्न की रंगीनियों का आइना
दिल है क्या ख़ून-ए-तमन्ना का छलकता जाम है

दीजिए बीमार-ए-उलफ़त की जिगर-दारी की दाद
नज़्अ' का आलम है होंटों पर तुम्हारा नाम है

फिर वो याद आए हुई मदहोश दिल की काएनात
फिर उठा दर्द-ए-जिगर फिर कुछ मुझे आराम है

ख़ाक-दान-ए-दहर में तस्कीन का जूया न हो
आह जब तक दिल धड़कता है कहाँ आराम है

वो तो दिल में दर्द की दुनिया बसा कर चल दिए
मुझ को हर तार-ए-नफ़स इक मौत का पैग़ाम है

वासिल-ए-मिज़राब-ए-ख़ामोशी है हर तार-ए-नफ़स
उस से कह दो अब तिरे बीमार को आराम है

कर रहा हूँ दोस्तों के ज़ो'म पर तर्क-ए-वतन
शायद अब आग़ाज़-ए-दौर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम है