हसरतें रोती रहें दिल में मुजाविर की तरह
दिल मगर चुप ही रहा लौह-ए-मक़ाबिर की तरह
ख़ुश्क पत्तों की तरह छुट गए यारान-ए-कुहन
फिर न पलटे कभी पतझड़ के मुसाफ़िर की तरह
आ तिरी माँग में कुछ अश्क पिरोता जाऊँ
मैं तो हर छाँव से गुज़रुँगा मुहाजिर की तरह
मैं हूँ इक नक़्श-ए-क़दम दश्त-ए-फ़रामोशी का
भूल जाओगे मुझे तुम भी मुसाफ़िर की तरह
चारागर दूर न जाना कहीं जी डरता है
आज की रात है गहरी शब-ए-आख़िर की तरह
दुश्मन-ए-मेहर-ओ-वफ़ा से कोई करता है निबाह
कौन चाहेगा तुझे तेरे 'मुसव्विर' की तरह
ग़ज़ल
हसरतें रोती रहें दिल में मुजाविर की तरह
मुसव्विर सब्ज़वारी