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हसरतें रोती रहें दिल में मुजाविर की तरह | शाही शायरी
hasraten roti rahen dil mein mujawir ki tarah

ग़ज़ल

हसरतें रोती रहें दिल में मुजाविर की तरह

मुसव्विर सब्ज़वारी

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हसरतें रोती रहें दिल में मुजाविर की तरह
दिल मगर चुप ही रहा लौह-ए-मक़ाबिर की तरह

ख़ुश्क पत्तों की तरह छुट गए यारान-ए-कुहन
फिर न पलटे कभी पतझड़ के मुसाफ़िर की तरह

आ तिरी माँग में कुछ अश्क पिरोता जाऊँ
मैं तो हर छाँव से गुज़रुँगा मुहाजिर की तरह

मैं हूँ इक नक़्श-ए-क़दम दश्त-ए-फ़रामोशी का
भूल जाओगे मुझे तुम भी मुसाफ़िर की तरह

चारागर दूर न जाना कहीं जी डरता है
आज की रात है गहरी शब-ए-आख़िर की तरह

दुश्मन-ए-मेहर-ओ-वफ़ा से कोई करता है निबाह
कौन चाहेगा तुझे तेरे 'मुसव्विर' की तरह