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हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है | शाही शायरी
hasrat-e-ahd-e-wafa baqi hai

ग़ज़ल

हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है

नासिर शहज़ाद

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हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है
तेरी आँखों में हया बाक़ी है

बात में कोहना रिवायात का लुत्फ़
हाथ पर रंग-ए-हिना बाक़ी है

अभी हासिल नहीं ज़ालिम को दवाम
अभी दुनिया में ख़ुदा बाक़ी है

बुझ गया गिर के ख़ुनुक आब में चाँद
सतह-ए-दरिया पे सदा बाक़ी है

आँख में इस्म-ए-मोहम्मद की महक
होंट पर हर्फ़-ए-दुआ बाक़ी है

गोपियाँ ही किसी गोकुल में नहीं
बंसियों में तो सदा बाक़ी है

पाँव के नीचे सरकती हुई रेत
सर में मसनद की हवा बाक़ी है

बीच में रात बचन बीते मिलन
ओट में जलता दिया बाक़ी है

कर्बला इफ़्फ़त इंसाँ की बक़ा
लुट के भी तेरी रिदा बाक़ी है

देख ये फूल ये महताब न जा
रुत में रस शब में नशा बाक़ी है