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हश्र में फिर वही नक़्शा नज़र आता है मुझे | शाही शायरी
hashr mein phir wahi naqsha nazar aata hai mujhe

ग़ज़ल

हश्र में फिर वही नक़्शा नज़र आता है मुझे

ताजवर नजीबाबादी

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हश्र में फिर वही नक़्शा नज़र आता है मुझे
आज भी वादा-ए-फ़र्दा नज़र आता है मुझे

ख़लिश-ए-इश्क़ मिटेगी मिरे दिल से जब तक
दिल ही मिट जाएगा ऐसा नज़र आता है मुझे

रौनक़-ए-चश्म-ए-तमाशा है मिरी बज़्म-ए-ख़याल
इस में वो अंजुमन-आरा नज़र आता है मुझे

उन का मिलना है नज़र-बंदी-ए-तदबीर ऐ दिल
साफ़ तक़दीर का धोका नज़र आता है मुझे

तुझ से मैं क्या कहूँ ऐ सोख़्ता-ए-जल्वा-ए-तूर
दिल के आईने में क्या क्या नज़र आता है मुझे

दिल के पर्दों में छुपाया है तिरे इश्क़ का राज़
ख़ल्वत-ए-दिल में भी पर्दा नज़र आता है मुझे

इबरत-आमोज़ है बर्बादी-ए-दिल का नक़्शा
रंग-ए-नैरंगी-ए-दुनिया नज़र आता है मुझे