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हरीम-ए-दिल में उतरती हैं आयतें उस की | शाही शायरी
harim-e-dil mein utarti hain aayaten uski

ग़ज़ल

हरीम-ए-दिल में उतरती हैं आयतें उस की

राग़िब शकेब

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हरीम-ए-दिल में उतरती हैं आयतें उस की
लहू भी करने लगा है तिलावतें उस की

क़रीब था तो रग-ए-जाँ से भी क़रीब रहा
बिछड़ के ता-ब-फ़लक हैं मसाफ़तें उस की

हुई है शाख़-ए-दिल-ओ-जाँ पे ख़्वाहिशों की नुमू
लहू के फूल खिलाएँगी क़ुर्बतें उस की

इसी उमीद पे ख़्वाबों की फ़स्ल बोई है
कि किश्त-ए-दिल में उगेंगी बशारतें उस की

ख़याल रंग हुआ चाँदनी शफ़क़ ख़ुशबू
हज़ार रंग में देखूँ मैं सूरतें उस की

नुमू-पज़ीर हूँ मुझ को न छोड़ ऐ धरती
मिरी जड़ों को अभी हैं ज़रूरतें उस की

लहू तो जम गया आँखों की पुतलियों में 'शकेब'
दिखाएँ अक्स भला क्या बसारतें उस की