हर ज़र्रा-ए-ख़ाकी को किरन हम ने बनाया
मिट्टी को लहू दे के चमन हम ने बनाया
था हुस्न मगर इक निगह-ए-नीम-रज़ा से
गेसू-ब-कमर लाला-शिकन हम ने बनाया
सद-शुक्र कि है उन का तबस्सुम भी हमीं पर
कलियों में जिन्हें ग़ुंचा-दहन हम ने बनाया
अग़्यार को गुल-पैरहनी हम ने अता की
अपने लिए फूलों का कफ़न हम ने बनाया
हर जज़्बा-ए-आज़ादी-ए-फ़ितरत को हुआ दी
हर बादा-ए-पैमाना-शिकन हम ने बनाया
तारीख़-ए-जुनूँ ये है कि हर दौर-ए-ख़िरद में
इक सिलसिला-ए-दार-ओ-रसन हम ने बनाया
डरते हैं ख़मोशी से हमारी मह-ओ-अंजुम
चुप रह के वो अंदाज़-ए-सुख़न हम ने बनाया
टकराए कभी मौज से साहिल पे कभी हैं
बहते हुए दरिया में वतन हम ने बनाया
मुस्तक़बिल-ए-तहज़ीब का नग़्मा वही ठहरा
जो ज़मज़मा-ए-गंग-ओ-जमन हम ने बनाया
अश्कों से हमारे है मुनव्वर नई दुनिया
शबनम को ज़िया दी तो करन हम ने बनाया
आफ़ाक़ का हर जल्वा 'नुशूर' इस में अयाँ है
मिल-जुल के वो आईना-ए-फ़न हम ने बनाया
ग़ज़ल
हर ज़र्रा-ए-ख़ाकी को किरन हम ने बनाया
नुशूर वाहिदी