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हर शख़्स बद-हवास ख़बर के सबब से था | शाही शायरी
har shaKHs bad-hawas KHabar ke sabab se tha

ग़ज़ल

हर शख़्स बद-हवास ख़बर के सबब से था

सरफ़राज़ आरिश

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हर शख़्स बद-हवास ख़बर के सबब से था
कश्ती में इंतिशार भँवर के सबब से था

आँखें बदन बग़ैर और आँखों में एक ख़्वाब
महरूमी-ए-मआल सफ़र के सबब से था

बीनाई के ग़ुबार से मंज़र में धूल थी
वो आइना सराब नज़र के सबब से था

इतना क़लील बोसा कि एहसास-ए-लम्स भी
ख़ुद-साख़्ता नशे के असर के सबब से था

वर्ना सड़क की मेड़ ठहरती क़ुसूर-वार
सद इम्तिनान हादिसा डर के सबब से था

खिड़की से रौशनी की वज़ाहत पे ये खुला
दीवार का जवाज़ तो घर के सबब से था

मिट्टी के मर्तबे का खुला ए'तिराफ़ था
मेरा ज़मीं को बोसा शजर के सबब से था