EN اردو
हर सम्त लहू-रंग घटा छाई सी क्यूँ है | शाही शायरी
har samt lahu-rang ghaTa chhai si kyun hai

ग़ज़ल

हर सम्त लहू-रंग घटा छाई सी क्यूँ है

फ़ुज़ैल जाफ़री

;

हर सम्त लहू-रंग घटा छाई सी क्यूँ है
दुनिया मिरी आँखों में सिमट आई सी क्यूँ है

क्या मिस्ल-ए-चराग़-ए-शब-ए-आख़िर है जवानी
शिरयानों में इक ताज़ा तवानाई सी क्यूँ है

दर आई है क्यूँ कमरे में दरियाओं की ख़ुश्बू
टूटी हुई दीवारों पे ललचाई सी क्यूँ है

मैं और मिरी ज़ात अगर एक ही शय हैं
फिर बरसों से दोनों में सफ़-आराई सी क्यूँ है