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हर साँस को महकाइए अब देर न कीजे | शाही शायरी
har sans ko mahkaiye ab der na kije

ग़ज़ल

हर साँस को महकाइए अब देर न कीजे

ओवेस अहमद दौराँ

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हर साँस को महकाइए अब देर न कीजे
इक फूल सा खिल जाइए अब देर न कीजे

इक जाम मोहब्बत से मसर्रत से भरा जाम
छलकाइए छलकाइए अब देर न कीजे

सच कहता हूँ इक उम्र से प्यासी है ये महफ़िल
पैमाना-ब-कफ़ आइए अब देर न कीजे

सावन की घटा बन के सुलगती हुई रुत में
दुनिया पे बरस जाइए अब देर न कीजे

ज़ंजीर में जकड़े हुए दीवानों को अपने
सूली से उतरवाइए अब देर न कीजे

सन्नाटा हर इक रूह को अब डसने लगा है
इक गीत कोई गाइए अब देर न कीजे

इस अहद-ए-शरर-बार पे फिर अम्न की शबनम
बरसाइए बरसाइए अब देर न कीजे

तलवारों ने चमकाया है मक़्तल की ज़मीं को
तलवारों को दफ़नाइए अब देर न कीजे

इक और हसीं ख़्वाब कि मिट जाए शब-ए-ग़म
'दौराँ' को भी दिखलाइए अब देर न कीजे