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हर नफ़स इक मुस्तक़िल फ़रियाद है | शाही शायरी
har nafas ek mustaqil fariyaad hai

ग़ज़ल

हर नफ़स इक मुस्तक़िल फ़रियाद है

साक़िब कानपुरी

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हर नफ़स इक मुस्तक़िल फ़रियाद है
कितनी पुर-ग़म इश्क़ की रूदाद है

घट रही हैं मेरे दिल की क़ुव्वतें
अब ये शायद आख़िरी फ़रियाद है

हो गई शायद कि अब तकमील-ए-इश्क़
वर्ना क्यूँ शोर-ए-मुबारकबाद है

जिस्म पाबंद-ए-तअ'य्युन हो तो हो
रूह तो हर क़ैद से आज़ाद है

फिर कहाँ गुलशन में वो आसूदगी
आशियाँ जब वक़्फ़-ए-बर्क़-ओ-बाद है

देखिए अंजाम-ए-कार-ए-काएनात
दिल मिरा फिर माइल-ए-फ़रियाद है

जिस में 'साक़िब' था वो मुझ से हम-कनार
मुझ को वो मंज़र अभी तक याद है