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हर किसी आँख का बदला हुआ मंज़र होगा | शाही शायरी
har kisi aankh ka badla hua manzar hoga

ग़ज़ल

हर किसी आँख का बदला हुआ मंज़र होगा

साईल इमरान

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हर किसी आँख का बदला हुआ मंज़र होगा
शहर-दर-शहर मसीहाओं का लश्कर होगा

आइना-रू है अगर दिल तो हिफ़ाज़त कीजे
किस को मा'लूम है किस हाथ में पत्थर होगा

ले के पैग़ाम-ए-ख़िज़ाँ आया है मेरे दर पे
वो जो कहता था कि आँगन में सनोबर होगा

फिर सियासत की महक आने लगी है मुझ को
जाने अब कौन मिरे शहर में बे-घर होगा

छू के देखो तो सही उस में नमी बाक़ी है
ये जो सहरा है किसी वक़्त समुंदर होगा