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हर इक छोटी से छोटी बात पर नादाँ निकलती है | शाही शायरी
har ek chhoTi se chhoTi baat par nadan nikalti hai

ग़ज़ल

हर इक छोटी से छोटी बात पर नादाँ निकलती है

रजनीश सचन

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हर इक छोटी से छोटी बात पर नादाँ निकलती है
कहीं तुम खो न जाओ सोच कर ही जाँ निकलती है

न जाने कैसे कैसे दर्द सीने में सुलगते हैं
न जाने कैसी कैसी साँस कुछ हैराँ निकलती है

किताबत से न जो सीखा वो दुनिया ने सिखाया है
ख़ुशी कितनी बजा हो दर्द से पिन्हाँ निकलती है

अजब है ज़िंदगी मुश्किल हुई आसान समझे थे
जहाँ समझा किए मुश्किल वहीं आसाँ निकलती है

वही जाँ तो निकालेगी यहाँ पर हो वहाँ पर हो
जो अब तक याँ निकलती थी वही अब वाँ निकलती है