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हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा | शाही शायरी
har ek gam pe sajda yahan rawa hoga

ग़ज़ल

हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा

वहीदा नसीम

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हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा
ख़ुदी का दौर है हर शख़्स अब ख़ुदा होगा

ब-नाम-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ ख़िज़ाँ की पूजा है
यही मज़ाक़-ए-गुलिस्ताँ रहा तो क्या होगा

धुआँ सा उठने लगा दिल से अहल-ए-महफ़िल में
नया चराग़ कोई बज़्म में जला होगा

तुम्हारे शहर में आए हैं अहल-ए-ग़ुर्बत फिर
इस आस पर कि कोई दर्द-आश्ना होगा

जरस है उन का सदा उन की कारवाँ उन के
सिवाए गर्द-ए-सफ़र मेरे पास क्या होगा

कभी न अहद-ए-जुनूँ में किसी ने सोचा था
ख़िरद का दौर बहुत सब्र-आज़मा होगा

'नसीम' हम से है ज़िंदा जहाँ में नाम-ए-वफ़ा
हमारे ब'अद ज़माना बदल चुका होगा