हर दुआ होगी बे-असर न समझ
आज नाहक़ है आँख तर न समझ
ज़ीस्त मुश्किल सही मगर ऐ दोस्त
मौत आसान रहगुज़र न समझ
हौसला रख तू रहरव-ए-मंज़िल
थक के रस्ते को अपना घर न समझ
पूजता हूँ मैं पत्थरों के सनम
मेरे दिल में है कोई डर न समझ
जा-ब-जा सुन तू मेरी सरगोशी
मैं फ़ज़ा में हूँ मुंतशिर न समझ
जिन चराग़ों की लौ बहुत कम है
उन चराग़ों को मो'तबर न समझ
मैं तही-दस्त मुफ़लिस-ओ-नादार
तू मुझे दस्त-ए-बे-हुनर न समझ
मैं हूँ क़ाइल तिरी परस्तिश का
तुझ से माँगूँगा मैं गुहर न समझ
तेरी दस्तक का मुंतज़िर 'अंजुम'
शहर में होगा कोई दर न समझ
ग़ज़ल
हर दुआ होगी बे-असर न समझ
आनन्द सरूप अंजुम