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हर-चंद गाम गाम हवादिस सफ़र में हैं | शाही शायरी
har-chand gam gam hawadis safar mein hain

ग़ज़ल

हर-चंद गाम गाम हवादिस सफ़र में हैं

इक़बाल अज़ीम

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हर-चंद गाम गाम हवादिस सफ़र में हैं
वो ख़ुश-नसीब हैं जो तिरी रहगुज़र में हैं

ताकीद-ए-ज़ब्त अहद-ए-वफ़ा इज़्न-ए-ज़िंदगी
कितने पयाम इक निगह-ए-मुख़्तसर में हैं

माज़ी शरीक-ए-हाल है कोशिश के बावजूद
धुँदले से कुछ नुक़ूश अभी तक नज़र में हैं

लिल्लाह इस ख़ुलूस से पुर्सिश न कीजिए
तूफ़ान कब से बंद मिरी चश्म-ए-तर में हैं

मंज़िल तो ख़ुश-नसीबों में तक़्सीम हो चुकी
कुछ ख़ुश-ख़याल लोग अभी तक सफ़र में हैं

महफ़िल में उन की सम्त निगाहें न उठ सकीं
हम बिल-ख़ुसूस अहल-ए-नज़र की नज़र में हैं

ये कैसे राह-रौ थे कि हर नक़्श-ए-पा के साथ
सज्दों के कुछ निशान भी इस रहगुज़र में हैं