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हर बात यहाँ बात बढ़ाने के लिए है | शाही शायरी
har baat yahan baat baDhane ke liye hai

ग़ज़ल

हर बात यहाँ बात बढ़ाने के लिए है

महबूब ख़िज़ां

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हर बात यहाँ बात बढ़ाने के लिए है
ये उम्र जो धोका है तो खाने के लिए है

ये दामन-ए-हसरत है वही ख़्वाब-ए-गुरेज़ाँ
जो अपने लिए है न ज़माने के लिए है

उतरे हुए चेहरे में शिकायत है किसी की
रूठी हुई रंगत है मनाने के लिए है

ग़ाफ़िल तिरी आँखों का मुक़द्दर है अँधेरा
ये फ़र्श तो राहों में बिछाने के लिए है

घबरा न सितम से न करम से न अदा से
हर मोड़ यहाँ राह दिखाने के लिए है