हर आश्ना से उस बिन बेगाना हो रहा हूँ
मज्लिस में शम्अ-रू की परवाना हो रहा हूँ
मुझ को मलामत-ए-ख़ल्क़ ख़ातिर में नाहीँ हरगिज़
ज़ुल्फ़ाँ की फ़िक्र में मैं दीवाना हो रहा हूँ
साक़ी शराब-ओ-साग़र अब चाहता नहीं हूँ
उस के ख़याल सूँ मैं मस्ताना हो रहा हूँ
उस के ख़याल सूँ मैं तन्हा-नशीं हूँ दाइम
वहशी सा मैं सबन सूँ बेगाना हो रहा हूँ
देख उस की लट का फाँदा भूला हूँ आब-ओ-दाना
'फ़ाएज़' असीर उस का बे-दाना हो रहा हूँ
ग़ज़ल
हर आश्ना से उस बिन बेगाना हो रहा हूँ
फ़ाएज़ देहलवी