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हर आन एक नया इम्तिहान सर पर है | शाही शायरी
har aan ek naya imtihan sar par hai

ग़ज़ल

हर आन एक नया इम्तिहान सर पर है

शबनम रूमानी

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हर आन एक नया इम्तिहान सर पर है
ज़मीन ज़ेर-ए-क़दम आसमान सर पर है

दुहाई देती हैं कैसी हरी-भरी फ़सलें
किसी ग़नीम की सूरत लगान सर पर है

मैं ख़ानदान के सर पर हूँ बादलों की मिसाल
सो बिजलियों की तरह ख़ानदान सर पर है

क़दम जमाऊँ तो धँसते हैं रेग-ए-सुर्ख़ में पाऊँ
जो सर उठाऊँ तो नीली चटान सर पर है

मैं जानता हूँ टलेगा ये जान ही ले कर
रह-ए-फ़रार नहीं मेहमान सर पर है

इक और वस्ल-ए-सुख़न और इक विसाल-ए-निगाह
मुफ़ारक़त की घड़ी मेरी जान! सर पर है