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हँसते हुए हुरूफ़ में जिस को अदा करूँ | शाही शायरी
hanste hue huruf mein jis ko ada karun

ग़ज़ल

हँसते हुए हुरूफ़ में जिस को अदा करूँ

शहपर रसूल

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हँसते हुए हुरूफ़ में जिस को अदा करूँ
बच्चों से किस जहाँ की कहानी कहा करूँ

या रब अज़ाब-ए-हर्फ़-ओ-तख़य्युल से दे नजात
ग़ज़लें कहा करूँ न मज़ामीं लिखा करूँ

क़दमों में किस के डाल दूँ ये नाम ये नसब
कुछ तो बताओ किस का क़सीदा पढ़ा करूँ

अब तक तो अपने आप से पीछा न छुट सका
मुमकिन है कल से आप के हक़ में दुआ करूँ

कितनी नई ज़बान हो कैसा नया सुख़न
इस अहद को तो देख लूँ 'ग़ालिब' को क्या करूँ

'शहपर' मिरी हदों का तअय्युन करे कोई
आँखों से बह रहूँ कि रगों में फिरा करूँ