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हमेशा ज़ुल्म के मंज़र हमें दिखाए गए | शाही शायरी
hamesha zulm ke manzar hamein dikhae gae

ग़ज़ल

हमेशा ज़ुल्म के मंज़र हमें दिखाए गए

अहमद नदीम क़ासमी

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हमेशा ज़ुल्म के मंज़र हमें दिखाए गए
पहाड़ तोड़े गए और महल बनाए गए

तुलू-ए-सुब्ह की अफ़्वाह इतनी आम हुई
कि निस्फ़ शब को घरों के दिए बुझाए गए

अब एक बार तो क़ुदरत जवाब-दह ठहरे
हज़ार बार हम इंसान आज़माए गए

फ़लक का तनतना भी टूट कर ज़मीं पे गिरा
सुतून एक घरौंदे के जब गिराए गए

तिरी ख़ुदाई में शामिल अगर नशेब भी हैं
तो फिर कलीम सर-ए-तूर क्यूँ बुलाए गए

ये आसमाँ थे कि आईने थे ख़लाओं में
मह-ओ-नुजूम में झाँका तो हम ही पाए गए

दराज़-ए-शब में कोई अपना हम-सफ़र ही न था
मगर 'नदीम' सदाएँ तो हम लगाए गए