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हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं | शाही शायरी
hamesha zindagi ki har kami ko jite rahte hain

ग़ज़ल

हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं

आलोक श्रीवास्तव

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हमेशा ज़िंदगी की हर कमी को जीते रहते हैं
जिसे हम जी नहीं पाए उसी को जीते रहते हैं

हमारे दुख की बारिश को कोई दामन नहीं मिलता
हमारी आँख के बादल नमी को जीते रहते हैं

किसी के साथ हैं रस्में किसी के साथ हैं क़समें
किसी के साथ जीना है किसी को जीते रहते हैं

हमें मा'लूम है इक दिन भरोसा टूट जाएगा
मगर फिर भी सराबों में नदी को जीते रहते हैं

हमारे साथ चलती है तुम्हारे प्यार की ख़ुशबू
लगाई थी जो तुम ने उस लगी को जीते रहते हैं

चहकते घर महकते खेत और वो गाँव की गलियाँ
जिन्हें हम छोड़ आए उन सभी को जीते रहते है

ख़ुदा के नाम-लेवा हम भी हैं तुम भी हो और वो भी
मगर अफ़सोस सब अपनी ख़ुदी को जीते रहते हैं