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हमें तो इंतिज़ारी और ही थी | शाही शायरी
hamein to intizari aur hi thi

ग़ज़ल

हमें तो इंतिज़ारी और ही थी

इनाम नदीम

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हमें तो इंतिज़ारी और ही थी
मगर बाद-ए-बहारी और ही थी

सँभलता क्या सँभाले से तुम्हारे
कि दिल को बे-क़रारी और ही थी

थी मेरे ख़्वाब से बाहर भी दुनिया
मगर सारी की सारी और ही थी

सभी कुछ था हमारे दिल के बस में
मगर बे-इख़्तियारी और ही थी

हमारा दिल कोई शीशा नहीं था
पर अब के संग-बारी और ही थी

जिए गरचे इसी दुनिया में हम भी
मगर दुनिया हमारी और ही थी