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हमारे अज़्म-ए-सफ़र के आगे सवाल-ए-लैल-ओ-नहार क्या है | शाही शायरी
hamare azm-e-safar ke aage sawal-e-lail-o-nahaar kya hai

ग़ज़ल

हमारे अज़्म-ए-सफ़र के आगे सवाल-ए-लैल-ओ-नहार क्या है

शारिब लखनवी

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हमारे अज़्म-ए-सफ़र के आगे सवाल-ए-लैल-ओ-नहार क्या है
ग़म-ए-मोहब्बत उठा लिया है तो गर्दिश-ए-रोज़गार क्या है

उमीद-ए-फ़र्दा पे जीने वालो हयात का ए'तिबार क्या है
उठो कि मंज़िल बुला रही है चलो कि अब इंतिज़ार क्या है

बिखरते फूलों न हम से पूछो हमें तो अब याद ही नहीं है
चलो ये अहल-ए-चमन से पूछें सुकून क्या है क़रार क्या है

मिरी निगाहों में फिर रहा है तिरा तकल्लुम तिरा तबस्सुम
मिरी निगाहों से कोई पूछे ये फूल क्या है बहार क्या है

नज़र से दामन बचा बचा के मैं दिल को आरिफ़ बना रहा हूँ
तुम्हारे जल्वों की मंज़िलों में निगाह का ए'तिबार क्या है

बहार-ए-गुल में क़दम क़दम पर शुऊ'र-ए-कामिल की है ज़रूरत
बहार उन के लिए ख़िज़ाँ है जो ये न समझे बहार क्या है