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हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं | शाही शायरी
hamara ishq salamat hai yani hum abhi hain

ग़ज़ल

हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं

अहमद अता

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हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं
वही शदीद अज़िय्यत है यानी हम अभी हैं

उसी पुरानी कहानी में साँस लेते हैं
वही पुरानी मोहब्बत है यानी हम अभी हैं

न जाने कब से दर-ए-दास्ताँ पे बैठे हैं
और इंतिज़ार की हिम्मत है यानी हम अभी हैं

तलब के कर्ब में इक मर्ग के दुआ-गो थे
तलब में वैसी ही शिद्दत है यानी हम अभी हैं

कसी के नाम पे हम दोस्ती निभाते थे
और अब भी वैसी ही शोहरत है यानी हम अभी हैं

तलब बढ़ाती चली जा रही है अपनी हवस
सो क़द्रे ख़ाम क़नाअत है यानी हम अभी हैं

कलाम-ए-'मीर' के सदक़े में शेर होते हैं
जो बैत है सो क़यामत है यानी हम अभी हैं

अजब ये शेर हैं अपने कि जिन में हम भी नहीं
बस एक ग़म की शरारत है यानी हम अभी हैं

ये इश्क़ पेशगी दार-ओ-रसन के हंगामे
ये रंग ज़िंदा सलामत है यानी हम अभी हैं

अमीर-ए-शहर है बेचैन शैख़ ख़ौफ़-ज़दा
अभी तलक ये अदावत है यानी हम अभी हैं

न पूरी है न अधूरी ये दास्तान-ए-अलम
कोई सुनी सी हिकायत है यानी हम अभी हैं