हम सोज़-ए-दिल बयाँ करें तुम से कहाँ तलक 
जलने लगी है अब तो हमारी ज़बाँ तलक 
कुछ बे-कसी-ए-राह-रौ-ए-ग़म न पूछिए 
मिलती नहीं है गर्द-ए-रह-ए-कारवाँ तलक 
शर्मा के लौट आए न जब कुछ असर हुआ 
नाले हमारे पहुँचे तो थे आसमाँ तलक 
उम्मीद-ए-बादा किस को है ख़ून-ए-जिगर पियो 
है मोहतसिब के रूप में पीर-ए-मुग़ाँ तलक 
राज़-ओ-नियाज़-ए-इश्क़ की क्या हो ख़बर हमें 
हासिल नहीं है दीद-ए-रुख़-ए-महवशाँ तलक 
किस मुँह से हम बयान करें माजरा-ए-दिल 
उन को नहीं पसंद है सोज़-ए-निहाँ तलक 
हम को क़फ़स ही रास हुआ बर्क़ के तुफ़ैल 
बाक़ी नहीं चमन में रहा आशियाँ तलक 
पा-ए-ज़ईफ़ बअ'द में चाहें तो टूट जाएँ 
पहुँचा दें एक बार तो कू-ए-बुताँ तलक 
शायद बक़ा-ए-इश्क़ इसी शय को कहते हैं 
हम भूल बैठे ग़म में ज़मान-ओ-मकाँ तलक 
यारो हमारी ज़ीस्त का क़िस्सा है मुख़्तसर 
महदूद है हदीस-ए-ग़म-ए-दिल-बराँ तलक 
मुतलक़ नहीं है 'कैफ़' को दावा-ए-जज़्ब-ए-दिल 
मक़्दूर इस का गिर्या-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ तलक
        ग़ज़ल
हम सोज़-ए-दिल बयाँ करें तुम से कहाँ तलक
सरस्वती सरन कैफ़

