हम से पूछा क्या बीती है आख़िर-ए-शब के मारों पर
सहरा सहरा रंग बिखेरे रक़्स किया अँगारों पर
इक साया शरमाता लजाता राह में तन्हा छोड़ गया
मैं परछाईं ढूँड रहा हूँ टूटी हुई दीवारों पर
सर-गश्ता थे मौज-ए-हवा से बीत गया वो मौसम तो हम
बर्ग-ए-ख़िज़ाँ की मानिंद अब आवारा हैं कोहसारों पर
भूली-बिसरी यादें आ कर सरगोशी करती हैं
फिर से कोई गीत सुनाओ दिल के शिकस्ता तारों पर

ग़ज़ल
हम से पूछा क्या बीती है आख़िर-ए-शब के मारों पर
इशरत क़ादरी