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हम सा दीवाना कहाँ मिल पाएगा इस दहर में | शाही शायरी
hum sa diwana kahan mil paega is dahr mein

ग़ज़ल

हम सा दीवाना कहाँ मिल पाएगा इस दहर में

अंजुम लुधियानवी

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हम सा दीवाना कहाँ मिल पाएगा इस दहर में
घर किया तामीर जिस ने दीमकों के शहर में

ख़ुद-कुशी करने में भी नाकाम रह जाते हैं हम
कौन अमृत घोल देता है हमारे ज़हर में

किस को है मरने की फ़ुर्सत सब यहाँ मसरूफ़ हैं
मौत तू बेकार में आई है ऐसे शहर में

टूटी कश्ती की तरह हैं वक़्त के साहिल पे हम
क्या ज़माना था बहा करते थे अपनी लहर में

एक वीरानी सी अंजुम रह गई आँखों में अब
ख़्वाब सारे बह गए हैं आँसुओं की नहर में