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हम-रही की बात मत कर इम्तिहाँ हो जाएगा | शाही शायरी
ham-rahi ki baat mat kar imtihan ho jaega

ग़ज़ल

हम-रही की बात मत कर इम्तिहाँ हो जाएगा

नसीर तुराबी

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हम-रही की बात मत कर इम्तिहाँ हो जाएगा
हम सुबुक हो जाएँगे तुझ को गिराँ हो जाएगा

जब बहार आ कर गुज़र जाएगी ऐ सर्व-ए-बहार
एक रंग अपना भी पैवंद-ए-ख़िज़ाँ हो जाएगा

साअत-ए-तर्क-ए-तअल्लुक़ भी क़रीब आ ही गई
क्या ये अपना सब तअल्लुक़ राएगाँ हो जाएगा

ये हवा सारे चराग़ों को उड़ा ले जाएगी
रात ढलने तक यहाँ सब कुछ धुआँ हो जाएगा

शाख़-ए-दिल फिर से हरी होने लगी देखो 'नसीर'
ऐसा लगता है किसी का आशियाँ हो जाएगा