हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं
कहता है दिल कि बुत भी ख़ुदा ने बनाए हैं
ले ले के तेरा नाम इन आँखों ने रात भर
तस्बीह-ए-इन्तिज़ार के दाने बनाए हैं
हम ने तुम्हारे ग़म को हक़ीक़त बना दिया
तुम ने हमारे ग़म के फ़साने बनाए हैं
वो लोग मुतमइन हैं कि पत्थर हैं उन के पास
हम ख़ुश कि हम ने आईना-ख़ाने बनाए हैं
भँवरे उन्ही पे चल के करेंगे तवाफ़-ए-गुल
जो दाएरे चमन में सबा ने बनाए हैं
हम तो वहाँ पहुँच नहीं सकते तमाम उम्र
आँखों ने इतनी दूर ठिकाने बनाए हैं
आज उस बदन पे भी नज़र आए तलब के दाग़
दीवार पर भी नक़्श वफ़ा ने बनाए हैं
ग़ज़ल
हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर