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हम ने किस रात नाला सर न किया | शाही शायरी
humne kis raat nala sar na kiya

ग़ज़ल

हम ने किस रात नाला सर न किया

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

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हम ने किस रात नाला सर न किया
पर उसे आह कुछ असर न किया

सब के हाँ तुम हुए करम-फ़रमा
इस तरफ़ को कभू गुज़र न किया

क्यूँ भवें तानते हो बंदा-नवाज़
सीना किस वक़्त मैं सिपर न किया

कितने बंदों को जान से खोया
कुछ ख़ुदा का भी तू ने डर न किया

देखने को रहे तरसते हम
न किया रहम तू ने पर न किया

आप से हम गुज़र गए कब के
क्या है ज़ाहिर में गो सफ़र न किया

कौन सा दिल है वो कि जिस में आह
ख़ाना-आबाद तू ने घर न किया

तुझ से ज़ालिम के सामने आया
जान का मैं ने कुछ ख़तर न किया

सब के जौहर नज़र में आए 'दर्द'
बे-हुनर तू ने कुछ हुनर न किया