हम न हँसते हैं और न रोते हैं
उम्र हैरत में अपनी खोते हैं
खा के ग़म ख़्वान-ए-इश्क़ के मेहमान
हाथ ख़ून-ए-जिगर से धोते हैं
वस्ल होता है जिन को दुनिया में
यारब ऐसे भी लोग होते हैं
कोस-ए-रहलत है जुम्बिश-ए-हर-दम
आह तिस पर भी यार सोते हैं
दिल लगा उस से मर्दुम-ए-दीदा
साथ अपने हमें डुबोते हैं
आह-ओ-नाला से वो ख़फ़ा है अबस
काँटे हम अपने हक़ में बूते हैं
याद आती हैं उस की जब बातें
दिल 'हसन' दोनों मिल के रोते हैं
ग़ज़ल
हम न हँसते हैं और न रोते हैं
मीर हसन