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हम न हँसते हैं और न रोते हैं | शाही शायरी
hum na hanste hain aur na rote hain

ग़ज़ल

हम न हँसते हैं और न रोते हैं

मीर हसन

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हम न हँसते हैं और न रोते हैं
उम्र हैरत में अपनी खोते हैं

खा के ग़म ख़्वान-ए-इश्क़ के मेहमान
हाथ ख़ून-ए-जिगर से धोते हैं

वस्ल होता है जिन को दुनिया में
यारब ऐसे भी लोग होते हैं

कोस-ए-रहलत है जुम्बिश-ए-हर-दम
आह तिस पर भी यार सोते हैं

दिल लगा उस से मर्दुम-ए-दीदा
साथ अपने हमें डुबोते हैं

आह-ओ-नाला से वो ख़फ़ा है अबस
काँटे हम अपने हक़ में बूते हैं

याद आती हैं उस की जब बातें
दिल 'हसन' दोनों मिल के रोते हैं