हम लोग अपनी राह की दीवार हो गए
या'नी कि मस्लहत में गिरफ़्तार हो गए
अब तो बुलंद और ज़रा हौसला करो
पत्थर जो मेल के थे वो दीवार हो गए
तूफ़ाँ में हम को छोड़ के जाने का शुक्रिया
अब अपने हाथ पाँव ही पतवार हो गए
घर को गिराने वाले सियासी मिज़ाज थे
ग़म में शरीक हो के वो ग़म-ख़्वार हो गए
पर्दे की बात पर्दे पे खुल कर जो आ गई
बच्चे समय से पहले समझदार हो गए
इतनी ज़रा सी बात पे हैरान है मिज़ाज
काग़ज़ के फूल कैसे महक-दार हो गए

ग़ज़ल
हम लोग अपनी राह की दीवार हो गए
अशोक मिज़ाज बद्र