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हम कहाँ कुंज-नशीनों में रहे | शाही शायरी
hum kahan kunj-nashinon mein rahe

ग़ज़ल

हम कहाँ कुंज-नशीनों में रहे

हामिदी काश्मीरी

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हम कहाँ कुंज-नशीनों में रहे
आसमानों में ज़मीनों में रहे

राहें बे-वज्ह मुनव्वर न हुईं
रात ख़ुर्शीद जबीनों में रहे

था फ़लक-गीर तलातुम शब का
हम सितारों के सफ़ीनों में रहे

जिस्म से साँप निकल आते हैं
एक दो पल ही दफ़ीनों में रहे

तुम को इसरार है ख़ाली ये मकाँ
हम शब ओ रोज़ मकीनों में रहे

सब्ज़ दाइम शजर-ए-हर्फ़ उगे
उम्र भर शूरा ज़मीनों में रहे