EN اردو
हम जूँ चकोर ग़श हैं अजी एक यार पर | शाही शायरी
hum jun chakor ghash hain aji ek yar par

ग़ज़ल

हम जूँ चकोर ग़श हैं अजी एक यार पर

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

;

हम जूँ चकोर ग़श हैं अजी एक यार पर
बुलबुल की तरह जी नहीं देते हज़ार पर

गर जी में कुछ नहीं है तो देखे है क्यूँ मुझे
उँगली को फेर फेर के तेग़े की धार पर

पा-बोस-ए-यार की हमें हसरत है ऐ नसीम
आहिस्ता आइओ तू हमारे मज़ार पर

रुख़्सार पर नुमूद हुआ ख़त ख़बर भी है
यानी कमर कसी है ख़िज़ाँ ने बहार पर

'रंगीं' तो ले के बैठे हैं अस्बाब-ए-ऐश सब
आवे ब-शर्त-ए-यार भी अपने क़रार पर