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हम हैं और शुग़्ल-ए-इश्क़-बाज़ी है | शाही शायरी
hum hain aur shughl-e-ishq-bazi hai

ग़ज़ल

हम हैं और शुग़्ल-ए-इश्क़-बाज़ी है

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

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हम हैं और शुग़्ल-ए-इश्क़-बाज़ी है
क्या हक़ीक़ी है क्या मजाज़ी है

दुख़्तर-ए-रज़ निकल के मीना से
करती क्या क्या ज़बाँ-दराज़ी है

ख़त को क्या देखते हो आइने में
हुस्न की ये अदा-तराज़ी है

हिन्दू-ए-चश्म ताक़-ए-अबरू में
क्या बना आन कर नमाज़ी है

नज़्र दें नफ़्स-कुश को दुनिया-दार
वाह क्या तेरी बे-नियाज़ी है

बुत-ए-तन्नाज़ हम से हो ना-साज़
कारसाज़ों की कारसाज़ी है

सच कहा है किसी ने ये ऐ 'ज़ौक़'
माल-ए-मूज़ी नसीब-ए-ग़ाज़ी है