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हम गिरे हैं जो आ के इतनी दूर | शाही शायरी
hum gire hain jo aa ke itni dur

ग़ज़ल

हम गिरे हैं जो आ के इतनी दूर

अहमद मुश्ताक़

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हम गिरे हैं जो आ के इतनी दूर
किस ने फेंका घुमा के इतनी दूर

कैसी ज़ालिम थी क़ुर्ब की ख़्वाहिश
कहाँ मारा है ला के इतनी दूर

अब तो उस का ख़याल भी दिल ने
रख दिया है उठा के इतनी दूर

अब तो वो बर्ग-ए-आरज़ू भी हवा
ले गई है उड़ा के इतनी दूर

लाला-ओ-गुल भी इक तसल्ली है
कौन आता है जा के इतनी दूर