हम ग़ज़ल में तिरा चर्चा नहीं होने देते 
तेरी यादों को भी रुस्वा नहीं होने देते 
कुछ तो हम ख़ुद भी नहीं चाहते शोहरत अपनी 
और कुछ लोग भी ऐसा नहीं होने देते 
अज़्मतें अपने चराग़ों की बचाने के लिए 
हम किसी घर में उजाला नहीं होने देते 
आज भी गाँव में कुछ कच्चे मकानों वाले 
घर में हम-साए के फ़ाक़ा नहीं होने देते 
ज़िक्र करते हैं तिरा नाम नहीं लेते हैं 
हम समुंदर को जज़ीरा नहीं होने देते 
मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़ 
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते
 
        ग़ज़ल
हम ग़ज़ल में तिरा चर्चा नहीं होने देते
मेराज फ़ैज़ाबादी

