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हम गर्दिश-ए-दौराँ के सितम देख रहे हैं | शाही शायरी
hum gardish-e-dauran ke sitam dekh rahe hain

ग़ज़ल

हम गर्दिश-ए-दौराँ के सितम देख रहे हैं

राज कुमार सूरी नदीम

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हम गर्दिश-ए-दौराँ के सितम देख रहे हैं
बेचारगी-ए-अहल-ए-करम देख रहे हैं

हम दिल पे सहे जाते हैं हर तीर-ए-जफ़ा को
है किस का जिगर देखे जो हम देख रहे हैं

है ये तो यक़ीं बदलेगा अंदाज़-ए-ज़माना
फ़िलहाल तो हम शिद्दत-ए-ग़म देख रहे हैं

ईसार-ओ-मुरव्वत हैं जो तुम देख रहे हो
बेदाद-ओ-तग़ाफ़ुल हैं जो हम देख रहे हैं

हँस हँस के सहे जाते हैं हर ताज़ा-सितम को
हम शिद्दत-ए-आलाम का दुख देख रहे हैं

हर हल्क़ा-ए-ज़ंजीर को यूँ चूमा नज़र ने
हम जैसे तिरी ज़ुल्फ़ के ख़म देख रहे हैं

बैठे हैं 'नदीम' अब भी लिए हसरत-ए-दीदार
फिर सू-ए-दर-ओ-बाम सनम देख रहे हैं