EN اردو
हल्की हल्की बूँदें बरसीं पंछी करें कलोल | शाही शायरी
halki halki bunden barsin panchhi karen kalol

ग़ज़ल

हल्की हल्की बूँदें बरसीं पंछी करें कलोल

चमन लाल चमन

;

हल्की हल्की बूँदें बरसीं पंछी करें कलोल
इस रुत में हैं अमृत से भी मीठे पी के बोल

जिस दिन उन से मिलन हुआ था जीवन में रस बरसा
अब बिर्हा ने जीवन रस में ज़हर दिया है घोल

महँगाई में हर इक शय के दाम हुए हैं दूने
मजबूरी में बिके जवानी दो कौड़ी के मोल

प्रेम-नगर की सम्त चला है कविता का इक राही
मन में आशा दीप जला कर घूँघट के पट खोल

जिस दिन महशर बरपा होगा खुल जाएँगी आँखें
अक़्ल के अंधे गाँठ के पूरे मन की आँखें खोल

वक़्त-ए-सहर है और चमन में शबनम चमके ऐसे
जैसे किरनों के धागों में मोती हों अनमोल