हैं किस लिए उदास कोई पूछता नहीं
रस्ता ख़ुद अपने घर का हमें सूझता नहीं
नक़्श-ए-वफ़ा किसी का कोई ढूँढता नहीं
अहल-ए-वफ़ा का फिर भी भरम टूटता नहीं
अहल-ए-हुनर की बात थी अहल-ए-नज़र के साथ
अब तो कोई भी उन की तरफ़ देखता नहीं
हम से हुई ख़ता तो बुरा मानते हो क्यूँ
हम भी तो आदमी हैं कोई देवता नहीं
दामन तुम्हारा हाथ से जाता रहा मगर
इक रिश्ता-ए-ख़याल है कि टूटता नहीं
सूरज के नूर पर भी अंधेरों का राज है
ऐ 'दर्द' दूर तक मुझे कुछ सूझता नहीं

ग़ज़ल
हैं किस लिए उदास कोई पूछता नहीं
विश्वनाथ दर्द