EN اردو
है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम | शाही शायरी
hai ye mar miTne ka inam tumhein kya malum

ग़ज़ल

है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम

इफ़्फ़त अब्बास

;

है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम
लज़्ज़त-ए-दश्ना-ए-बदनाम तुम्हें क्या मा'लूम

तुम ने देखी है फ़क़त मेरी परेशाँ-हाली
मुझ पे क्या क्या हुए इकराम तुम्हें क्या मा'लूम

हैरती हो के उठाए हुए दिल फिरते हैं
इस के लग जाने का अंजाम तुम्हें क्या मा'लूम

जज़्बा-ए-ख़्वाहिश-ओ-एहसास की इस बाज़ी में
कौन हो जाएगा नाकाम तुम्हें क्या मा'लूम

देखते हो मुझे पर-बस्ता तो हँस देते हो
है यहाँ कौन तह-ए-दाम तुम्हें क्या मा'लूम

वक़्त का रंग बदलते नहीं देखा तुम ने
सूरत-ए-गर्दिश-ए-अय्याम तुम्हें क्या मा'लूम

मौसम-ए-मेहर के दो-चार बरस देखे हैं
सख़्ती-ए-मौसम-ए-आलाम तुम्हें क्या मा'लूम